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किसी मासूम को देखो … तो नजर यूँ रखना : Respect Women

poeticrebellion
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किसी मासूम को देखो  …  तो नजर यूँ रखना   …
की उसे तेरी शराफत का एहसास न हो   …
बड़ी नाजुक है वो मासूम …. बहुत भोली है   ….
क्या पता उसको तेरी नज़रों का   … अंदाज न हो  ?
तेरी उठती हुई   … गिरती हुई   …  पलकों की तहें   …
जो तेरी साजिशों को  …. सरेआम बयां करती हैं   …
वो सिमटती है खुद   ….  बचा के नज़र  …. यूँ तुझसे  ….
अपने हंसने से कहीं  … खुद वही बदनाम न हो   …
वैसे ये शाम का अच्छा है शग़ल  … लोगों का  …
कई चौराहों पर…. वो रोज़ खड़े रहते हैं   …
आँखें सिकती हैं  … बिना डर  के बेहयाई से   ….
जैसे हर जिस्म  …. जो गुजर था अभी  …. “नंगा हो ”  …
खुद को इतना न बदल  … कि तेरी पहचान मिटे  ….
बहकी इन आदतों से यूँ  तेरा ईमान मिटे  …
अब तो रुक  ….  और बदल दे ये नज़र के नक़्शे   …
इससे पहले की तेरा सच  … और ये इंसान मिटे  ….

किसी मासूम को देखो  …  तो नजर यूँ रखना   …

की उसे तेरी शराफत का एहसास न हो   …

बड़ी नाजुक है वो मासूम …. बहुत भोली है   ….

क्या पता उसको तेरी नज़रों का   … अंदाज न हो  ?

तेरी उठती हुई   … गिरती हुई   …  पलकों की तहें   …

जो तेरी साजिशों को  …. सरेआम बयां करती हैं   …

वो सिमटती है खुद   ….  बचा के नज़र  …. यूँ तुझसे  ….

अपने हंसने से कहीं  … खुद वही बदनाम न हो   …

वैसे ये शाम का अच्छा है शग़ल  … लोगों का  …

कई चौराहों पर…. वो रोज़ खड़े रहते हैं   …

आँखें सिकती हैं  … बिना डर  के बेहयाई से   ….

जैसे हर जिस्म  …. जो गुजर था अभी  …. “नंगा हो ”  …

खुद को इतना न बदल  … कि तेरी पहचान मिटे  ….

बहकी इन आदतों से यूँ  तेरा ईमान मिटे  …

अब तो रुक  ….  और बदल दे ये नज़र के नक़्शे   …

इससे पहले की तेरा सच  … और ये इंसान मिटे  ….

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